Sunday 4 October 2009

ओखली

ओ से ओखली
ओखली पड़ी है उपेक्षित
आँगन के एक कोने में
मूसल को अभी भी
इंतजार है
चूड़ियों के खनकने की
ओखली में झांक कर देखो
कितनी ही पीढ़ियों की धड़कनें
सुरक्षित हैं इसके अंदर
समय अपने विद्युत पैरों से
रौंद डालेगा सारी यादें
सपनों में सुनूंगा मैं
ओखली का संगीत
आसपास मंडराएगी पहचानी गंध
चमकेंगी इसमें चांदनी रातें
पसीने की बूँदें और खिलखिलाती हँसी

इससे पहले कि समय
मुझसे सब कुछ छीने
और मुझे विस्थापित कर दे
मैं ओखली में धान का कूटना
और चावल के दानों का छिटकना
देख लेना चाहता हूं।