ओ से ओखली
ओखली पड़ी है उपेक्षित
आँगन के एक कोने में
मूसल को अभी भी
इंतजार है
चूड़ियों के खनकने की
ओखली में झांक कर देखो
कितनी ही पीढ़ियों की धड़कनें
सुरक्षित हैं इसके अंदर
समय अपने विद्युत पैरों से
रौंद डालेगा सारी यादें
सपनों में सुनूंगा मैं
ओखली का संगीत
आसपास मंडराएगी पहचानी गंध
चमकेंगी इसमें चांदनी रातें
पसीने की बूँदें और खिलखिलाती हँसी
इससे पहले कि समय
मुझसे सब कुछ छीने
और मुझे विस्थापित कर दे
मैं ओखली में धान का कूटना
और चावल के दानों का छिटकना
देख लेना चाहता हूं।
Sunday, 4 October 2009
Thursday, 16 April 2009
बर्फ़ तुम पिघलो
बादल का घिरना
जीवन में काले बादलों के घिरने जैसा ही नहीं है
उनका बर्फ़ बन कर गिरना भी है
बच्चों का गिरती बर्फ़ में उत्सव मनाना
और हँसी का लौट आना भी है
बर्फ, तुम गिरो
रात भर बर्फ का परत-दर-परत जमना
अंदर ही अंदर कुछ जम जाना
और जड़ हो जाना ही नहीं
सुबह होते ही
ताज़ा बर्फ पर
बच्चों का नंगे पाँव
उछल-कूद मचाना भी है
बर्फ, तुम जमो
किरण का कोमल स्पर्श
और स्लेट की छत से बर्फ़ का
टप-टप पिघल जाना
सब कुछ खो जाना ही नहीं
सूनी आँखों में
आँसुओं का लौट आना भी है
बर्फ, तुम पिघलो।
जीवन में काले बादलों के घिरने जैसा ही नहीं है
उनका बर्फ़ बन कर गिरना भी है
बच्चों का गिरती बर्फ़ में उत्सव मनाना
और हँसी का लौट आना भी है
बर्फ, तुम गिरो
रात भर बर्फ का परत-दर-परत जमना
अंदर ही अंदर कुछ जम जाना
और जड़ हो जाना ही नहीं
सुबह होते ही
ताज़ा बर्फ पर
बच्चों का नंगे पाँव
उछल-कूद मचाना भी है
बर्फ, तुम जमो
किरण का कोमल स्पर्श
और स्लेट की छत से बर्फ़ का
टप-टप पिघल जाना
सब कुछ खो जाना ही नहीं
सूनी आँखों में
आँसुओं का लौट आना भी है
बर्फ, तुम पिघलो।
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