Thursday 16 April 2009

बर्फ़ तुम पिघलो

बादल का घिरना
जीवन में काले बादलों के घिरने जैसा ही नहीं है
उनका बर्फ़ बन कर गिरना भी है
बच्चों का गिरती बर्फ़ में उत्सव मनाना
और हँसी का लौट आना भी है
बर्फ, तुम गिरो

रात भर बर्फ का परत-दर-परत जमना
अंदर ही अंदर कुछ जम जाना
और जड़ हो जाना ही नहीं
सुबह होते ही
ताज़ा बर्फ पर
बच्चों का नंगे पाँव
उछल-कूद मचाना भी है
बर्फ, तुम जमो
किरण का कोमल स्पर्श
और स्लेट की छत से बर्फ़ का
टप-टप पिघल जाना
सब कुछ खो जाना ही नहीं
सूनी आँखों में
आँसुओं का लौट आना भी है
बर्फ, तुम पिघलो।

4 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

भाई, बहुत सुंदर.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदरम्!

www.dakbabu.blogspot.com said...

बहुत सुन्दर लिखा आपने..बधाई !!
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आपने डाक टिकट तो खूब देखे होंगे...पर "सोने के डाक टिकट" भी देखिये. डाकिया बाबू के ब्लॉग पर आयें तो सही !!

aarkay said...

अति सुंदर ! मौसम के जैसे हालात चल रहे हैं , देख कर ऐसा लगता है कि बर्फ का पड़ना भी एक असामान्य बात हो जाएगी.